History

मेवपुर एवं राजकुंवर (राजकुमार) का संक्षिप्त इतिहास

मेवपुर बरचौली,राजकुंवर (राजकुमार),रजवाड (रजवार ) एवं वत्सगोत्री ( बजगोती) का संक्षिप्त इतिहास –
मेवपुर के संस्थापक बाबा मधुकर शाह अपने नाम से मेवपुर को बसाया था इसका एक नहीं अनेक प्रमाण है जैसे कि १०० वर्ष से अधिक पुराने कवि गोपाल कृत ग्रंथ के संकलन कर्ता श्री मुरलीधर ब्रह्मभट्ट द्वारा इसका उल्लेख गद्य रूप में किया गया है जो राजकुंवर (राजकुमार) रजवाड (रजवार) एवं बजगोती (वत्सगोत्री) का ऐतिहासिक ग्रंथ है तथा आगरा,अवध प्रोविंस गज़ेटियर में भी मेवपुर, बाबा मधुकर शाह तथा बाबा ज़ालिम शाह एक नहीं अनेक बार उल्लेखनीय है ,परन्तु ऐतिहासिक तथ्यों में मात्र मेवपुर का ही वर्णन है कहीं भी बरचौली शब्द का उल्लेख नही है जबकि राजकीय दस्तावेज में “मेवपुर बरचौली” नाम उल्लेख किया गया है । इसका तात्पर्य यह है कि मेवपुर तथा बरचौली दोनों ही स्थान के दृष्टिकोण से कालांतर में महत्वपूर्ण थे !बरचौली शब्द का क्या तात्पर्य है ? इसका बहुत प्रयास के उपरांत तथा पारिवारिक बुजुर्गों के अनुसार यह निष्कर्ष निकला गया कि बरच + औली दो शब्दों से बरचौली शब्द का निर्माण हुआ है दोनों संस्कृत के शब्दा है , बरच , वर्चस्व का अपभ्रंश है तथा इसका अर्थ कुलीन व प्रभावशाली है औली का अर्थ समूह (गोद) ,जिसका शाब्दिक अर्थ है – प्रभावशाली व कुलीन लोगों का समूह अर्थात बरचौली ! यह इसलिए प्रमाणित होता है कि मेवपुर परिवार का सर्वप्रथम निवास बरचौली के निकट बना था जिसके खंडहर पर श्री रामपाल यादव (पाले अहिर) का वर्तमान मकान का निर्माण किया जा चुका है वह स्थान आज भी सामान्य से अधिक ऊँचाई पर है जिसको मैंने अपने बचपन में एक उचे टीले के रूप में देखा था जैसा कि पूर्वजों के अनुसार भी पुष्टि किया गया है कि मेवपुर परिवार का प्रथम निवास उपरोक्त स्थल पर था ! तदुपरांत मेवपुर बाज़ार की स्थापना तथा उसके उत्तरी तरफ़ कोट का निर्माण हुआ जिसका प्रमाण आज विशाल टीले के रूप में विद्यमान है जिसके तीनों तरफ़ से गहरी खाई है जैसा कि कालान्तर में सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे ही खाई बनायी जाती थी,जिसके पूर्व दिशा में मेवपुर परिवार गण का वर्तमान निवास है जिसको आज भी कोटवा बोला जाता है !
दिल्ली पति सम्राट पृथ्वीराज चौहान के भाई महापुरुष बाबा चाहिरदेव चौहान, काली नदी के तट पर मैनपुरी, उत्तर प्रदेश में अपने राजधानी का निर्माण सन् 1248 ई. में किया तथा चौथी पीढ़ी में बाबा बरियार शाह , ग्राम-जमुवाआ जनपद – सुल्तानपुर ,उत्तर प्रदेश में अपने गढ़ की स्थापना किया उनके ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार के रूप में अपने गढ़ की स्थापना ग्राम- भदैंयाराज- “राजकुंवर बंश” के रूप में किया था उसी पीढ़ी में आगे बाबा मधुकर शाह ने कालांतर में अपने नाम से मेवपुर ग्राम व रियासत की स्थापना किया था, उनके आगामी पीढ़ी में आगे अमर बलिदानी वीर पुरुष ,मेवपुर शिरोमणि बाबा ज़ालिम शाह हुए ! जैसा कि बाबा बरियार शाह के तीन पुत्र हुए तथा अति सुंदर एवं यशस्वी ज्येष्ठ पुत्र राजकुंवर (अपभ्रंश राजकुमार) वंश के रूप में प्रसिद्ध हुए अन्य दो पुत्र क्रमशः “रजवाड” (अपभ्रंश रजवार) तथा वत्स गोत्री ( अपभ्रंश बजगोती ) के रूप में प्रसिद्ध हुए क्योंकि चौहान का गोत्र वत्स है ! तात्पर्य यह है कि चौहान,राजकुंवर ,रजवाड एवं वत्सगोत्री सभी अग्नि वंश – चौहान है जो काल,परिस्थितियों एवं परम्पराओं के वशीभूत अभिन्न अंग होते हुए भी भिन्न-भिन्न उपनाम से प्रसिद्ध हुए ! “मेवपुर परिवार गण” विशेष रूप से मेवपुर , धवरूआ ( अंबेडकर नगर), गंगापुर ,कलिकापुर , कल्याणपुर , गोपालपुर , हरिपुर , रामपुर बांगर , काशीपुर (सुल्तानपुर) भैसौली, लौंदा (जौनपुर) इत्यादि स्थानों पर वर्तमान समय में निवास करते है !
नोट:- उपरोक्त तथ्य पुर्वजों के कथनानुसार, ऐतिहासिक तथ्यों एवं राजकीय दस्तावेज के आधार पर है “भानु प्रताप सिंह-मेवपुर ” ✍️