Baba jalim Shah

बाबा ज़ालिम शाह

बाबा ज़ालिम बीर संक्षिप्त परिचय-

मेवपुर शिरोमणि बाबा ज़ालिम शाह, अद्वितीय महान योद्धा,युग पुरूष थे, अपने पौरुष व अदम्य साहस से “मेवपुर रियासत”के विस्तार हेतु मेवपुर से लगभग १०० किलोमीटर उत्तर दिशा पवित्र श्री सरयू नदी के तट कम्हरिया घाट ( वर्तमान में जनपद अंबेडकर नगर , उत्तर प्रदेश) तथा दक्षिण में पवित्र गोमती नदी के तट तक किया था ! जिसका प्रामाण आज भी विद्यमान है जैसे कि निजापुर,बड़े गाँव, वर्तमान में पारुईया आश्रम एवं उसका शैक्षणिक परिसर की भूमि मेवपुर परिवार के पूर्वजों द्वारा दान स्वरूप बाबा बरूआदास को दिया था,धवरूआ ( वर्तमान में अंबेडकर नगर) तथा दोस्त पुर के निकट दूल्हा का कोट मेवपुर दहला ( अदालत में विचाराधीन है) उसके निकट कल्याणपुर एवं कलिकापुर ( वर्तमान में सुल्तानपुर) में परिवार गण निवास करते है तंथा दक्षिण में गंगापुर एवं श्री गोमती नदी तट पर द्वारिका का कोट जो कालांतर में आततायी द्वारिका से मुक्त करवा कर क्षेत्रीय सामाजिक समरसतावादी व्यवस्था व सौहार्द का वातावरण स्थापित किया था,रियासत विस्तार के श्रृंखला में श्री सरयू नदी के निकट मासोढा में भीषण युद्ध हुआ था , बाबा ज़ालिम शाह के पौरुष से ईर्ष्यालु प्रतिस्पर्धियों के द्वारा छल व षड्यंत्र के परिणामस्वरूप बलिदान हो गये थे,क्योंकि नैतिक रूप से महान योद्धा बाबा ज़ालिम शाह पर विजय प्राप्त करना असंभव था तदुपरांत घोड़े पर सवार ज़ालिम बीर बाबा का सिर कट कर धड़ से लटके हुए अवस्था में लगभग १०० किलोमीटर दूर से उनका चेतक समान स्वामिभक्त घायल घोड़ा मेवपुर तक ले आया था ! यह चमत्कारिक व अविस्मरणीय घटना स्वत: ही महापुरुष व दैविय शक्ति के प्रतीक “ज़ालिम बीर बाबा” के अदम्य व अद्भुत साहस का परिचय देता है,चेतक समान स्वामिभक्त घायल घोड़े ने अपने स्वामी ज़ालिम वीर बाबा के शरीर को कुटुम्ब के निकट तक पहुँचाने हेतु जीवित था क्योंकि मेवपुर पहुँचते ही वह भी अमरत्व को प्राप्त हो गया !
बाबा के बलिदान दिवस का सटीक प्रमाण उपलब्ध नहीं है परन्तु उपलब्ध दस्तावेज़ों के आधार पर सन् १७९० में बाबा का बलिदान हुआ था ! अमर बलिदानी ज़ालिम बीर बाबा समाधि शक्ति स्थल के साथ तीन और समाधियाँ हैं , समाधि शक्ति स्थल के सामने दायीं तरफ़ उनके पुत्र अमर बलिदानी-संग्राम सिंह , वायीं तरफ़ चेतक समान स्वामिभक्त अमर बलिदानी घोड़े की समाधि है इन दिनों के मध्य सामने छोटी समाधि है जो अज्ञात कुटुम्ब के वीर बलिदानी पुरुष की समाधि है,परन्तु यह निश्चित है कि सभी समाधिस्थ एक साथ बलिदान हुए थे !
लगभग -२३० वर्ष पूर्व सदियों उपरांत भी ज़ालिम बीर बाबा के प्रति परिवार जनों के साथ-साथ समाज के अन्य वर्गों का उतना ही अगाध श्रध्दा भाव है , समाधि शक्ति स्थल पर प्रति मेला लगता है तथा समाधि शक्ति स्थल पर अपने विभिन्न मनोकामनाओं हेतु लोग अपनी उपस्थित दर्ज करवाते हैं तथा उनकी मनोकामना भी पूर्ण होती हैं !